'ज़की' हमारा मुक़द्दर हैं धूप के ख़ेमे By Sher << चमक रहा है ख़ेमा-ए-रौशन द... कितने ही फूल चुन लिए मैं ... >> 'ज़की' हमारा मुक़द्दर हैं धूप के ख़ेमे हमें न रास कभी आया साएबान कोई Share on: