कैसी ताबीर की हसरत कि 'ज़िया' बरसों से By Sher << ख़ुश्क आँखें लिए हँसता हु... इश्क़ के मारों को आदाब कह... >> कैसी ताबीर की हसरत कि 'ज़िया' बरसों से ना-मुराद आँखों ने देखा ही नहीं ख़्वाब कोई Share on: