बे-चारा कितनी दूर से आया है शैख़-जी Admin ब्राह्मण पर शायरी, Unpublished Sher << दिल तो हो अच्छा नहीं है ग... बहार-ए-शोख़-ओ-चमन-तंग-ओ-रं... >> बे-चारा कितनी दूर से आया है शैख़-जी का'बे में क्यूँ दबाएँ न हम बरहमन के पाँव Share on: