हो कर शहीद इश्क़ में पाए हज़ार जिस्म Admin शहीद फौजी शायरी, Unpublished Sher << जौर-ए-ज़ुल्फ़ की तक़रीर प... हातिफ़-ए-ग़ैब सुन के ये च... >> हो कर शहीद इश्क़ में पाए हज़ार जिस्म हर मौज-ए-गर्द-ए-राह मिरे सर को दोश है Share on: