उनका शोलों से दोस्ताना है,अपना तिनकों का आशियाना है.अबके उसको भी आज़माना है,जिसका अंदाज़ शातिराना है.मुझसे कह के ये फांसलों से मिला,ये ज़माना नया ज़माना है.नींद आती है मुझको पेड़ों पर,पंछियों का यही ठिकाना है.वक़्त शायद है इससे नावाकिफ़ ,मुझमें कितना बड़ा खज़ाना है.अपनी अपनी हैं फ़ितरतें ये भी,मुझको लिखना उसे मिटाना है.मेरी ग़ज़लें भी जानती हैं ये,खुद को खोना है उसको पाना है..