हुजूम-ए-गम मेरा हमराह था जब मैकदे पहुँचा Admin जुल्म पर शायरी, इज़हार << तुम उलझे रहे हमें आजमाने ... है आशिक़ी में रस्म >> हुजूम-ए-गम मेरा हमराह था जब मैकदे पहुँचामगर एक बेखुदी हमराह थी जब लौट कर आए। Share on: