कल हलकी सी बरसात में हो गयी मुलाक़ात उनसे,नज़रों की शबनम ने जैसे कर ली हो हर बात …उनसे,उनकी आँखों में थी ऐसी कशिश के क्या कहें,मेरे जिस्म के रोम रोम ने कर ली मोहब्बत उनसे,मासूम है कुछ इस क़दर उनका छूने का एहसास,आखिर एक मोड़ पर कर ली मेरी हया ने हरारत उनसे,पलकों के परदे में करवट लेती थी कुछ पाक खताए,मेरी मुस्कराहट ने कर ही ली हो जैसे शरारत उनसे,गाने लगी उनकी ख़ामोशी कुछ ऐसे हसीन नगमे,संभले न जाते थे शायद अपने खयालात उनसे,मेरा आँचल भी करने लगा क्यों बेवफाई मुझसे,छुड़ा के मेरे हाथों की ज़मीन गया लिपट उनसे,बूंदों में बरस रहा हो जैसे आसमान से प्यार बेशुमार,कुछ खामोश से सवालों के मिल गए हो जवाब उनसे