दिल की चंद धड़कनों को रोज बटोरता हूं मैंउम्र की कुछ कतरनों को रोज जोड़ता हूं मैंतेरे दर्द की गर्मी भी जिसे पिघला नहीं पातीउन बर्फीले जख्मों को अब रोज तोड़ता हूं मैंअपनी हर सांस को जिंदा रखने के लिएतेरे आसरे पर ये तन्हा जिंदगी छोड़ता हूं मैंदुनिया की भीड़ में तुझे याद कर सकूं कुछ पलअजनबी राहों की तरफ कदमों को मोड़ता हूं मैं