दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैं ज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में Admin जावेद अख्तर हिन्दी शायरी, दर्द << खामोश हूँ सिर्फ तुम्हारी ... जब भी होगी पहली बारिश तुम... >> दर्द के फूल भी खिलते हैं बिखर जाते हैंज़ख़्म कैसे भी हों कुछ रोज़ में भर जाते हैंरास्ता रोके खड़ी है यही उलझन कब सेकोई पूछे तो कहें क्या कि किधर जाते हैं- जावेद अख़्तर Share on: