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कैसे मान लूँ की तू पल पल में शामिल नहीं.कैसे मान लूँ की तू हर चीज़ में हाज़िर नहीं.कैसे मान लूँ की तुझे मेरी परवाह नहीं.कैसे मान लूँ की तू दूर हे पास नहीं.देर मैने ही लगाईं पहचानने में मेरे ईश्वर.वरना तूने जो दिया उसका तो कोई हिसाब ही नहीं.जैसे जैसे मैं सर को झुकाता चला गयावैसे वैसे तू मुझे उठाता चला गया....