मंज़िल भी नहीं Admin प्रेम << तेरी हँसी पर जहा वार दू त... नजरो से सलाम देता हूँ नजर... >> मंज़िल भी नहीं, ठिकाना भी नही,वापस उनके पास जाना भी नहीं... ..मैंने ही सिखाया था उन्हें तीर चलाना और अबमेरे सिवा उनका कोई निशाना भी नहीं ! Share on: