तू नजीरे-हुस्न है, मैं मिसाले-इश्क हूंतू खुदा की नूर है, मैं बुझा चराग़ हूंहै अभी मुझे यकीं, इसजनम में वस्ल होये यकीं अस्ल हो, मैं अभीदुआ में हूंसोलह दरिया पार की तबतेरा शहर मिलातूने सुनी थी जो सदा, मैंवही आवाज़ हूंआग में सुरुर है और दर्दभी मजबूर हैजल रहा हूं शौक से, मैं हिज्र का माहताब हूं...