रौशनी को तीरगी का क़हर बन कर ले गया जुदाई << बे-सबब हम से जुदाई न करो ये कैफ़ियत है मेरी जान अब... >> रौशनी को तीरगी का क़हर बन कर ले गयाआँख में महफ़ूज़ थे जितने भी मंज़र ले गया!* तीरगी- अँधेरा Share on: