दर्द ने जब सर उठाया मैं ग़ज़ल कहने लगा ज़ख्म दिल का मुस्कुराया मैं ग़ज़ल कहने

दर्द ने जब सर उठाया मैं ग़ज़ल कहने लगा
ज़ख्म दिल का मुस्कुराया मैं ग़ज़ल कहने लगा
न हुनर था हाथ में न साथ में तकदीर थी
वक़्त ने मुझ को सिखाया मैं ग़ज़ल कहने लगा
नाम जब अपनी हथेली पर लिखा उसने मेरा
हौसला मेरा बढाया मैं ग़ज़ल कहने लगा
जब मिले मुझ को किताबों में मेरी सूखे गुलाब
वक़्त गुज़रा याद आया मैं ग़ज़ल कहने लगा
गैर ने आ कर किया था क़त्ल खुशियों का मगर
मेरे सर इलज़ाम आया मैं ग़ज़ल कहने लगा

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