शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़र्माता हूँ Admin शायर और उनकी शायरी, रिश्ते << कुछ ख़ास रिश्ते कुछ ख़ास ... एक जरा सी बात पर इतना अहम... >> शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़र्माता हूँतो रूह बन कर ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँआ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँजैसे हर शै में किसी शै की कमी पाता हूँ। Share on: