(1) ताज़ा हैं अभी याद में ऐ साक़ी-ए-गुलफ़ाम वो अक्स-ए-रुख़-ए-यार से लहके हुए अय्याम वो फूल सी खुलती हुई दीदार की साअत वो दिल सा धड़कता हुआ उम्मीद का हंगाम उम्मीद कि लौ जागा ग़म-ए-दिल का नसीबा लो शौक़ की तरसी हुई शब हो गई आख़िर लो डूब गए दर्द के बे-ख़्वाब सितारे अब चमकेगा बे-सब्र निगाहों का मुक़द्दर इस बाम से निकलेगा तिरे हुस्न का ख़ुर्शीद इस कुंज से फूटेगी किरन रंग-ए-हिना की इस दर से बहेगा तिरी रफ़्तार का सीमाब उस राह पे फैलेगी शफ़क़ तेरी क़बा की फिर देखे हैं वो हिज्र के तपते हुए दिन भी जब फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जाँ में फ़ुग़ाँ भूल गई है हर शब वो सियह बोझ कि दिल बैठ गया है हर सुब्ह की लौ तीर सी सीने में लगी है तंहाई में क्या क्या न तुझे याद किया है क्या क्या न दिल-ए-ज़ार ने ढूँडी हैं पनाहें आँखों से लगाया है कभी दस्त-ए-सबा को डाली हैं कभी गर्दन-ए-महताब में बाहें (2) चाहा है इसी रंग में लैला-ए-वतन को तड़पा है इसी तौर से दिल उस की लगन में ढूँडी है यूँही शौक़ ने आसाइश-ए-मंज़िल रुख़्सार के ख़म में कभी काकुल की शिकन में उस जान-ए-जहाँ को भी यूँही क़ल्ब-ओ-नज़र ने हँस हँस के सदा दी कभी रो रो के पुकारा पूरे किए सब हर्फ़-ए-तमन्ना के तक़ाज़े हर दर्द को उजयाला हर इक ग़म को सँवारा वापस नहीं फेरा कोई फ़रमान जुनूँ का तन्हा नहीं लौटी कभी आवाज़ जरस की ख़ैरिय्यत-ए-जाँ राहत-ए-तन सेह्हत-ए-दामाँ सब भूल गईं मस्लिहतें अहल-ए-हवस की इस राह में जो सब पे गुज़रती है वो गुज़री तन्हा पस-ए-ज़िंदाँ कभी रुस्वा सर-ए-बाज़ार गरजे हैं बहुत शैख़ सर-ए-गोशा-ए-मिम्बर कड़के हैं बहुत अहल-ए-हकम बर-सर-ए-दरबार छोड़ा नहीं ग़ैरों ने कोई नावक-ए-दुश्नाम छूटी नहीं अपनों से कोई तर्ज़-ए-मलामत उस इश्क़ न उस इश्क़ पे नादिम है मगर दिल हर दाग़ है इस दिल में ब-जुज़-दाग़-ए-नदामत