आरजू की थी इक आशियाने की Admin तेरी आदत शायरी, Love << मेरी बहार-ओ-खिज़ां जिसके ... इतना कुछ खोया कि हमें पान... >> आरजू की थी इक आशियाने कीआंधियां चल पड़ी ज़माने कीमेरे ग़म को कोई समझ ना पायाक्योंकि मुझे आदत थी मुस्कुराने की! This is a great आशियाना शायरी. Share on: