आसमान से जितनी शबनम रोज बरसती है उससे ज्यादा इस धरती पर धुप बिखरती है अहसासों को Admin जीवन की सच्चाई शायरी, Poetry << सुबह उजाले थे खड़े इस इंतज... कुछ ख्वाहिशो के पंख मुझे ... >> आसमान से जितनी शबनम रोज बरसती हैउससे ज्यादा इस धरती पर धुप बिखरती हैअहसासों को कहाँ जरुरत होती भाषा कीखुशबू कितनी ख़ामोशी से बातें करती हैकुछ सपने तो सारे जीवन शौक मनाते हैंजब भी दिल में घुटकर कोई ख्वाहिश मरती है Share on: