अजनबी सी राहों में,दूर तक निगाहों में ,तीश्नगी का मौसम है,बेरुखी का मौसम है,आज फिर निगाहों कोबीते कल की प्यास है,ऐसा लगता है जैसे,चाँद फिर उदास है,रंग फीके फीके हैं,तारे रूठे रूठे हैं,बादलों का शोर है,खिज़ां खिज़ां ये दौर है,इस कदर अकेले मेंप्यार की तलाश है,ऐसा लगता है जैसे,चाँद फिर उदास है,अजब है दिल की वेह्शातें,और आस पास आहटें ,जिसको ढूँढना चाहो,उसको ढून्ढ कब पाओ,फिर रहा हूँ दरबदर ,मुझे उसकी आस है,ऐसा लगता है जैसे,चाँद फिर उदास है,बात तो करे कोई,साथ तो चले कोई ,ख़ामोशी के पहरे हा,ज़ख़्म दिल के गहरे है,आज वो मिले मुझको दर्द जिसको रास है ,ऐसा लगता है जैसे,चाँद फिर उदास है,