दफ़्न हे कितनी मुझमें Admin बसंत पंचमी की शायरी, Dard << ये जलजले यूं ही बेसबब नही... इश्क़ सभी को जीना सीखा दे... >> दफ़्न हे कितनी मुझमें, मेरी रौनक़ें मत पूछौ...उजड़ उजड़ कर जौ बसता रहा, वौ शहर हूँ में ... Share on: