न रुकी वक़्त की गर्दिश और न ज़माना बदला Admin परिन्दे शायरी, Dard << "किस हद तक जाना है ये कौन... रहने दे अभी गुंजाइशें जरा... >> न रुकी वक़्त की गर्दिशऔर न ज़माना बदला...पेड़ सूखा तो परिन्दोने ठिकाना बदला...!!!मुझे देखने वाले लाखो है.लेकिनमै जिसे देखता हुॅ,वो लाखो में एक है. Share on: