वो जो मिलते थे कभी हम से दिवानों की तरह आज यूँ मिलते हैं जैसे कभी पहचान न थी वो जो मिलते थे कभी हम से दिवानों की तरह देखते भी हैं तो यूँ मेरी निगाहों में कभी अजनबी जैसे मिला करते हैं राहों में कभी इस क़दर उन की नज़र हम से तो अंजान न थी वो जो मिलते थे कभी हम से दिवानों की तरह एक दिन था कभी यूँही जो मचल जाते थे खेलते थे मिरी ज़ुल्फ़ों से बहल जाते थे वो परेशाँ थे मिरी ज़ुल्फ़ परेशान न थी वो जो मिलते थे कभी हम से दिवानों की तरह वो मोहब्बत वो शरारत मुझे याद आती है दिल में इक प्यार का तूफ़ान उठा जाती है थी मगर ऐसी तो उलझन में मिरी जान न थी वो जो मिलते थे कभी हम से दिवानों की तरह