आ गए फिर तिरे अरमान मिटाने हम को दिल से पहले ये लगा देंगे ठिकाने हम को सर उठाने न दिया हश्र के दिन भी ज़ालिम कुछ तिरे ख़ौफ़ ने कुछ अपनी वफ़ा ने हम को कुछ तो है ज़िक्र से दुश्मन के जो शरमाते हैं वहम में डाल दिया उन की हया ने हम को ज़ुल्म का शौक़ भी है शर्म भी है ख़ौफ़ भी है ख़्वाब में छुप के वो आते हैं सताने हम को चार दाग़ों पे न एहसान जताओ इतना कौन से बख़्श दिए तुम ने ख़ज़ाने हम को बात करने की कहाँ वस्ल में फ़ुर्सत 'बेख़ुद' वो तो देते ही नहीं होश में आने हम को