आ गई धूप मिरी छाँव के पीछे पीछे तिश्नगी जैसे हो सहराओं के पीछे पीछे नक़्श बनते गए इक पाँव से आगे आगे नक़्श मिटते गए इक पाँव के पीछे पीछे तुम ने दिल-नगरी को उजड़ा हुआ गाँव जाना वर्ना इक शहर था इस गाँव के पीछे पीछे नींद बर्बाद है ख़ूनाब हैं आँखें फिर तो गर चलूँ क़ाफ़िया-पैमाओं के पीछे पीछे अक़्ल हर ख़्वाब की ताबीर के पीछे भागे दिल अज़ल ही से है आशाओं के पीछे पीछे अन-सुने एक बुलावे ने उजाड़े आँगन बरकतें उठ गईं सब माओं के पीछे पीछे वसवसे रोक के बैठे हैं हमारा रस्ता हादसे हैं कि लगे पाँव के पीछे पीछे हो के रहना है किसी रोज़ उसे भी रौशन वो जो इक भेद है रेखाओं के पीछे पीछे अहल-ए-दिल ढूँड कोई ऐसे चलेगा कब तक अपनी बे-सूद तमन्नाओं के पीछे पीछे अपने बढ़ते हुए गुस्ताख़ क़दम रोक 'रज़ा' ग़ौस ओ अब्दाल चले माओं के पीछे पीछे