आ गया फिर रमज़ाँ क्या होगा हाए ऐ पीर-ए-मुग़ाँ क्या होगा बाग़-ए-जन्नत में समाँ क्या होगा तू नहीं जब तो वहाँ क्या होगा ख़ुश वो होता है मिरे नालों से और अंदाज़-ए-फ़ुग़ाँ क्या होगा दूर की राह है सामाँ हैं बड़े इतनी मोहलत है कहाँ क्या होगा देख लो रंग-ए-परीदा को मिरे दिल जलेगा तो धुआँ क्या होगा होगा बस एक निगह में जो तमाम वो ब-हसरत निगराँ क्या होगा हम ने माना कि मिला मुल्क-ए-जहाँ न रहे हम तो जहाँ क्या होगा मर के जब ख़ाक में मिलना ठहरा फिर ये तुर्बत का निशाँ क्या होगा जिस तरह दिल हुआ टुकड़े अज़-ख़ुद चाक इस तरह कताँ क्या होगा या तिरा ज़िक्र है या नाम तिरा और फिर विर्द-ए-ज़बाँ क्या होगा इश्क़ से बाज़ न आना 'हैदर' राज़ होने दे अयाँ क्या होगा