आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने ग़फ़लत ज़रा न की मिरे ग़फ़लत-शिआर ने ओ बे-नसीब दिन के तसव्वुर से ख़ुश न हो चोला बदल लिया है शब-ए-इंतिज़ार ने अब तक असीर-ए-दाम-ए-फ़रेब-ए-हयात हूँ मुझ को भुला दिया मिरे पर्वरदिगार ने नौहागरों को भी है गला बैठने की फ़िक्र जाता हूँ आप अपनी अजल को पुकारने देखा न कारोबार-ए-मोहब्बत कभी 'हफ़ीज़' फ़ुर्सत का वक़्त ही न दिया कारोबार ने