आ रहा है मिरे गुमान में क्या कोई रहता था इस मकान में क्या वो तपिश है कि जल उठे साए धूप रक्खी थी साएबान में क्या इक तिरी दीद की तमन्ना है और रक्खा है इस जहान में क्या क्या हमेशा ही ऐसा होता है मोड़ आता है दरमियान में क्या की मिरे ब'अद क़त्ल से तौबा आख़िरी तीर था कमान में क्या गूँगी बहरी बसारतों के लिए ख़्वाब लिक्खे थे इम्तिहान में क्या क्या सुकूँ की तलाश है सब को एक हलचल सी है जहान में क्या रेत सी उड़ रही है क्यूँ 'उज़मा' लग गया घुन किसी चटान में क्या