आ रही है शब-ए-ग़म मेरी तरफ़ मेरे लिए साक़िया चश्म-ए-करम मेरी तरफ़ मेरे लिए थकने लगता हूँ तो आवाज़ सी आती है कोई और दो-चार क़दम मेरी तरफ़ मेरे लिए लोग कहते हैं कि हो जाती है दुनिया रंगीं इक नज़र मेरी क़सम मेरी तरफ़ मेरे लिए पाएलें कू-ए-निगाराँ में खनक उठती हैं जब वो रखते हैं क़दम मेरी तरफ़ मेरे लिए झिलमिलाते हुए तारे ही सही सुब्ह-ए-फ़िराक़ हैं तो कुछ दीदा-ए-नम मेरी तरफ़ मेरे लिए हाए वो बेकसी-ए-इश्क़ कि दुनिया थी ख़िलाफ़ दैर ही था न हरम मेरी तरफ़ मेरे लिए होगी कुछ ऐसी ही मजबूरी-ए-हालात 'शमीम' इल्तिफ़ात अब जो है कम मेरी तरफ़ मेरे लिए