आब-दर-आब मिरे साथ सफ़र करते हैं तिश्ना-लब ख़्वाब मिरे साथ सफ़र करते हैं इक सियह-रात तआ'क़ुब में लगी रहती है नज्म-ओ-महताब मिरे साथ सफ़र करते हैं दश्त-ए-एहसास तिरी प्यास से मैं हार गया वर्ना सैलाब मिरे साथ सफ़र करते हैं जानते हैं कि मुझे नींद नहीं आती है फिर भी कुछ ख़्वाब मिरे साथ सफ़र करते हैं ये बताते हैं कहाँ बैठना उठना है कहाँ मेरे आदाब मिरे साथ सफ़र करते हैं ऐ समुंदर मैं बचाए हुए फिरता हूँ तुझे सारे गिर्दाब मिरे साथ सफ़र करते हैं सच तो ये है कि नहीं एक भी सच्चा इन में जितने अलक़ाब मिरे साथ सफ़र करते हैं इश्क़ तन्हा है मिरे आलम-ए-वहशत का गवाह ताक़-ओ-मेहराब मिरे साथ सफ़र करते हैं कौन समझेगा इन अश्कों की इबारत 'तारिक़' सारे एराब मिरे साथ सफ़र करते हैं