आबरू उल्फ़त में अगर चाहिए रखनी सदा चश्म को तर चाहिए दिल तो तुझे दे ही चुके जान भी लीजिए हाज़िर है अगर चाहिए यार मिले या न मिले सुब्ह-ओ-शाम कूचा-ए-जानाँ में गुज़र चाहिए नाम भी नम का न रहा चश्म में अब तू गिर्ये लख़्त-ए-जिगर चाहिए तीर-ए-निगह वो है कि जिस तीर के सामने होने को जिगर चाहिए अब की बचे जी तो किसू के तईं फिर न कहें बार-ए-दिगर चाहिए दिल भी जवाहर है व-लेकिन हुज़ूर इस के परखने को नज़र चाहिए