आदमी नूर है By Ghazal << चमका जो चाँद रात का चेहरा... अगर वो गुल-बदन दरिया नहान... >> आदमी नूर है जल्वा-ए-तूर है रब है मुख़्तार-ए-कुल बंदा मजबूर है नश्शा-ए-हिर्स में हर कोई चूर है सालिहों के लिए वादा-ए-हूर है क्या है सेहुनियत एक नासूर है मुग़्लिया सल्तनत अज़्म-ए-तैमूर है 'हाफ़िज़' इंसान से ज़िंदगी दूर है Share on: