आग बरसती लगती है दीवारों से 'साइब' क्या लिख आए हो अँगारों से क़त्ल के बा'द मुझे साए में डाल आते इतनी तो उम्मीद थी मुझ को यारों से मेरा दुख-सुख बाँटने तो आ जाते हैं हम-साए अच्छे हैं रिश्ते-दारों से देख लो अपना सर रक्खा है नेज़ों पर फ़ासला हम ने रक्खा है दस्तारों से आख़िर कब तक क़त्ल की ख़बरें पढ़नी हैं अब तो वहशत होती है अख़बारों से