आग के दरमियान से निकला मैं भी किस इम्तिहान से निकला फिर हवा से सुलग उठे पत्ते फिर धुआँ गुल्सितान से निकला जब भी निकला सितारा-ए-उम्मीद कोहर के दरमियान से निकला चाँदनी झाँकती है गलियों में कोई साया मकान से निकला एक शो'ला फिर इक धुएँ की लकीर और क्या ख़ाक-दान से निकला चाँद जिस आसमान में डूबा कब उसी आसमान से निकला ये गुहर जिस को आफ़्ताब कहें किस अँधेरे की कान से निकला शुक्र है उस ने बेवफ़ाई की मैं कड़े इम्तिहान से निकला लोग दुश्मन हुए उसी के 'शकेब' काम जिस मेहरबान से निकला