आगही आइने तलक है क्या ख़ुद के होने में कोई शक है क्या क़र्या क़र्या भटक रहे हैं लोग सब को अंधा किए चमक है क्या मुँह पे आती हैं अन-कही बातें दिल में बाक़ी अभी कसक है क्या अंदर अंदर से हिल रहा हूँ मैं होती महसूस कुछ धमक है क्या तुम जो आँखों को बंद रखते हो देख ली उस की इक झलक है क्या क्यूँ निगाहों में हैं मिरी सब रंग मेरे पेश-ए-नज़र धनक है क्या है उड़ानों का सिलसिला हर-सू अब ज़मीं की तरह फ़लक है क्या कोई मंज़र भी अब नहीं भाता मुस्तक़िल आँख में खटक है क्या उन को आती है क्यूँ हया 'राहत' पैरहन सिर्फ़ जिस्म तक है क्या