आग़ाज़-ए-मोहब्बत का तो अंजाम नहीं है ये सुब्ह वो है जिस की कभी शाम नहीं है क्या देखता है अपने सिवा देखने वाले आईना-ए-दिल जल्वा-गह-ए-आम नहीं है अल्लाह री तक़दीर की नाकामी-ए-पैहम यूँ बैठा हूँ अब जैसे कोई काम नहीं है बे-वज्ह किया क़ैद असीरों को क़फ़स में सय्याद के सर फिर भी तो इल्ज़ाम नहीं है मरने नहीं देती है रिहाई की तमन्ना दुनिया में मुझे वर्ना कोई काम नहीं है अब ख़ाक हो ऐमन के बयाबाँ में तजल्ली 'अफ़्क़र' कोई बे-पर्दा सर-ए-बाम नहीं है