आह भी हर्फ़-ए-दुआ हो जैसे इक दुखी दिल की सदा हो जैसे वो है ख़ामोश तो यूँ लगता है हम से रब रूठ गया हो जैसे नाम लिख लिख के मिटाता है मिरा ये भी इक नक़्श-ए-वफ़ा हो जैसे दिल के आईने में है इक चेहरा कोई शय ढूँड रहा हो जैसे ज़िंदगी ऊँघ रही है ऐ 'जोश' किसी मुफ़्लिस का दिया हो जैसे