आह जिस वक़्त सर उठाती है By Ghazal << मैं आब-ए-इश्क़ में हल हो ... सरिश्क-ए-ग़म सिमट कर दिल ... >> आह जिस वक़्त सर उठाती है अर्श पर बर्छियाँ चलाती है नाज़-बरदार-ए-लब है जाँ जब से तेरे ख़त की ख़बर को पाती है ऐ शब-ए-हिज्र रास्त कह तुझ को बात कुछ सुब्ह की भी आती है चश्म-ए-बद्दूर-चश्म-ए-तर ऐ 'मीर' आँखें तूफ़ान को दिखाती है Share on: