आह करना दिल-ए-हज़ीं न कहीं आग लग जाएगी कहीं न कहीं मिरे दिल से निकल के दुनिया में चैन से हसरतें रहीं न कहीं बे-हिजाबी निगाह-ए-उल्फ़त की देखे वो शर्मगीं कहीं न कहीं आ गए लब पे दिल-नशीं नाले जा ही पहुँचेंगे अब कहीं न कहीं हम समझते हैं हज़रत-ए-'बेख़ुद' चोट खा आए हो कहीं न कहीं