आह वो कौन था ख़ुदा मारा जिस ने उस से मुझे लगा मारा क्या ग़ज़ब थी वो जुम्बिश-ए-अबरू साफ़ जैसे कि नीमचा मारा बा'द मुद्दत मिले थे कल उन से आज लोगों ने फिर लगा मारा वस्ल की शब भी मैं न सोया आह रोज़-ए-हिज्र उन के ख़ौफ़ का मारा पा के मर्ज़ी खुला जो बातों में ये हँसाया कि बस लुटा मारा जिन्स-ए-सब्र-ओ-ख़िरद लुटे 'मारूफ़' मुल्क-ए-दिल फ़ौज-ए-ग़म ने आ मारा