आहन की सुर्ख़ ताल पे हम रक़्स कर गए तक़दीर तेरी चाल पे हम रक़्स कर गए पंछी बने तो रिफ़अत-ए-अफ़्लाक पर उड़े अहल-ए-ज़मीं के हाल पे हम रक़्स कर गए काँटों से एहतिजाज किया है कुछ इस तरह गुलशन की डाल डाल पे हम रक़्स कर गए वाइज़ फ़रेब-ए-शौक़ ने हम को लुभा लिया फ़िरदौस के ख़याल पे हम रक़्स कर गए हर ए'तिबार-ए-हुस्न-ए-नज़र से गुज़र गए हर हल्क़ा-हा-ए-जाल पे हम रक़्स कर गए माँगा भी क्या तो क़तरा-ए-चश्म-ए-तसर्रुफ़ात 'साग़र' तिरे सवाल पे हम रक़्स कर गए