आह-ओ-नाला ने कुछ असर न किया हिज्र की शाम को सहर न किया तल्ख़ी-ए-सब्र ख़ुश-गवार हुई ज़हर ने भी मुझे असर न किया सर को फोड़ा जो कोहकन ने तो क्या इश्क़ में किस ने नज़्र-ए-सर न किया कौन सी ऐसी आफ़त आई जब आसमाँ ने मुझे सिपर न किया काँपता है वो दिल ग़ज़ब से तिरे जिस ने ऐ बुत ख़ुदा का डर न किया जिस ने देखा वो रोए आतिशनाक फिर गुमाँ उसे ने बर्क़ पर न किया कूच अपना भी हो गया 'अहक़र' ग़म-ओ-अंदोह ने सफ़र न किया