आईना जिस्म से है मुलाक़ात के लिए बेताब सी है रूह तिरी ज़ात के लिए मिलना था रब से कर के बदन को मिसाल-ए-ख़ाक इस को सँवारे जाते थे किस बात के लिए पुर्सान-ए-हाल हश्र में कोई नहीं है आज बेचैन सब हैं तेरी इनायात के लिए गर कुछ नहीं तो अश्क-ए-नदामत ही होते साथ नज़राना कुछ तो होता तिरी ज़ात के लिए 'नीलम' अमल के जलते चराग़ों को रखना साथ कुछ रौशनी तो चाहिए इस रात के लिए