आईना-ए-ख़याल था अक्स-पज़ीर राज़ का तूर शहीद हो गया जल्वा-ए-दिल-नवाज़ का पाया बहुत किया बुलंद उस ने हरीम-ए-नाज़ का ता ना पहुँच सके ग़ुबार-ए-रह-गुज़र-ए-नियाज़ का ख़स्तगी-ए-कलीम ने नुक्ता अजब समझा दिया वर्ना हरीफ़ में भी था इस मिज़ा-ए-दराज़ का दैर मिला था राह में का'बे को हम निकल गए जज़्बा-ए-शौक़ में दिमाग़ किस को हो इम्तियाज़ का बंदगी और साहबी अस्ल में दोनों एक हैं जिस का ग़ुलाम अयाज़ है वो है ग़ुलाम अयाज़ का गो तही-नसीब ने दूर रखा तो क्या हुआ बंदा-ए-ख़ाना-ज़ाद हूँ उस के क़द-ए-दराज़ का शौक़ तिरा है मौजज़न ज़ौक़ तिरा बहाना-जू खोल न दें भरम कहीं परद ज्ञान राज़ का मस्ती-ए-बे-ख़ुदी से याँ आँख खुली न हश्र तक या'नी यही जवाब था नर्गिस-ए-नीम-बाज़ का आह-ओ-फ़ुग़ाँ के साथ साथ छा गई एक बे-ख़ुदी क़त-ए-ज़बाँ ज़रूर था शम-ए-ज़बाँ-दराज़ का ख़ाक में मिल गए वले आँख उठी न शर्म से हम से हुआ न हक़ अदा उस की निगाह-ए-नाज़ का मुतरिब-ए-ख़ुल्द क्या सुनाए वहशत-ए-ख़स्ता क्या सुने मो'तक़िद-ए-क़दीम है ज़मज़मा हिजाज़ का