आज आईना जो देखा कितनी हैरानी हुई अजनबी आई नज़र इक शक्ल पहचानी हुई जब ये जाना वक़्त-ए-मुश्किल कोई भी साथी नहीं दिल को राहत सी मिली महसूस आसानी हुई हम समझते थे कि बे-घर बे-सहारा हैं मगर आसमाँ ने एक चादर हम पे थी तानी हुई आँसूओं पे हँसने वालो क्या तुम्हें मालूम है आग जो दिल में थी आ कर आँख में पानी हुई साथ ले कर ख़ुशियाँ अपने ज़िंदगी फिर आ गई हम ने अपने दिल में थी कुछ और ही ठानी हुई हम भी उस लम्हे से ख़ाइफ़ थे बहुत ख़ाइफ़ ऐ दोस्त हम से मिल कर तुम को भी यकसर परेशानी हुई रास्ते की मुश्किलें 'तासीर' क्या पुर-लुत्फ़ थीं हाँ मगर मंज़िल पर आ कर कुछ परेशानी हुई