आज आप मिरे हाल पे करते हैं तअस्सुफ़ अशफ़ाक़ इनायात करम मेहर तलत्तुफ़ ऐ गिर्या पस-ए-क़ाफ़िला दिल नाम है इक यार ये ख़स्ता भी निभ जाए जो यक दम हो तवक़्क़ुफ़ है डोल तो नाला का वही दिल भी वही लेक तासीर न अब इस में है न इस में तसर्रुफ़ सूफ़ी है वो बे-इल्म हो जो हस्ती से अपनी किस काम पढ़ा तू ने जो यूँ इल्म-ए-तसव्वुफ़ ख़ामोशी भी कुछ तुर्फ़ा लतीफ़ा है कि 'क़ाएम' करना पड़े जिस में न तसन्नो न तकल्लुफ़