आज भी याद-ए-यार बाक़ी है इश्क़ का ए'तिबार बाक़ी है ज़िंदगी की रमक़ है हम में अभी आप का इंतिज़ार बाक़ी है यादगार-ए-जुनूँ हमारे पास दामन-ए-तार-तार बाक़ी है फिर रहे हैं सलीब उठाए हम हाँ अभी वस्ल-ए-दार बाक़ी है ये उम्मीदें न छीन लें हालात बस यही इख़्तियार बाक़ी है लफ़्ज़-ओ-मा'नी की वुसअ'तों के साथ शे'र का इख़्तिसार बाक़ी है मर्हबा उश्शाक़ान-ए-हक़ तुम से कुछ उम्मीद-ए-बहार बाक़ी है