आज गुम-गश्ता ख़यालात ने चौंकाया है फिर कोई दश्त-ए-जुनूँ से मुझे ले आया है ज़ेहन-ए-आवारा ने एहसास को राहें दे कर मंज़िल-ए-दार-ओ-रसन तक मुझे पहुँचाया है ख़ौफ़ ने लूट ली हर गाम पे नब्ज़ों की असास दर-ब-दर रूह की गलियों में मिरा साया है हौसले आज भी मीरास हैं मेरे दिल के मैं ने हर-गाम पे तूफ़ान को पलटाया है बे-ख़तर कौन चला जानिब-ए-मंज़िल 'मंज़र' किस का लहजा है जो माहौल से टकराया है