आज के दिन को यूँ भर जाऊँगा बन के इक उम्र गुज़र जाऊँगा सुब्ह में पैदा हुआ था फिर से और फिर रात को मर जाऊँगा मैं तआ'क़ुब में हूँ अपने दिल के ये जिधर जाए उधर जाऊँगा ये सलीब और ये कीलें मुझ से जो निकालोगे बिखर जाऊँगा इस लड़ाई में मिरे डर से मिरी छोड़ कर अपनी सिपर जाऊँगा हार के भी मुझे जाना जो पड़े मैं झुका के नहीं सर जाऊँगा मंज़िलें नाम तुम्हारे कर के साथ में ले के डगर जाऊँगा ख़त्म मेरा ये सफ़र होगा नहीं रास्ते में हो तो घर जाऊँगा बाद मेरे न भरी जाएगी वो जगह दिल में मैं कर जाऊँगा मुस्तहिक़ आँख मिलेगी जो कहीं दे के उस को मैं नज़र जाऊँगा कुछ घड़ी साथ निभा भी दूँ तो क्या आख़िरश तो मैं मगर जाऊँगा प्यास को रख के किनारे उस के ये जो सहरा है मैं तर जाऊँगा