आज की रात चराग़ों को बुझा रहने दे दर्द को हिज्र के पहलू से लगा रहने दे देख तुझ को नहीं अंदाज़ा-ए-वहशत शायद इक जला ख़ेमा ही सहरा में लगा रहने दे तू मिरा साज़-ए-गिरफ़्ता नहीं सुन पाएगा ऐसा कर तू मुझे तस्वीर बना रहने दे तिश्नगी के मिरे क़िस्से न ज़माने को सुना मुझ को दरिया के किनारे ही पड़ा रहने दे कूज़ा-गर छोड़ गया मुझ को बिखरने के लिए अब मिरी ख़ाक को मिट्टी में मिला रहने दे ताज़ियत करनी है ख़ुद से दिल-ए-मरहूम मुझे ता'ज़िया-ख़ाने में ये फ़र्श-ए-अज़ा रहने दे ख़ाली हाथों से दुआओं के सिवा क्या करते जब मसीहा ने कहा अब ये दवा रहने दे