आज उस ने कहा है आने को नींद आती नहीं ज़माने को क्या कहा तू ने मुझ से ऐ सय्याद छोड़ दूँ अपने आशियाने को मेरी बर्बादियों से ये सच है दर्स मिल जाएगा ज़माने को उन की आँखों को देख कर सोचा कौन जाए शराब-ख़ाने को आज नाराज़ हो गए वो भी और क्या चाहिए ज़माने को भूल बैठे हैं ख़ुद को ऐ 'माहिर' हम चले थे उन्हें भुलाने को